लहू की कीमत का अच्छा आंकलन किया है सरकार ने ,
मरने वाले का ५ लाख और घायल का ५० हज़ार में ,
अगर लहू की कीमत ही चाहिए तो फिर यह आंसू क्यों,
रक्त की गंगा तो शायद ना रुके ,
पर उसके उफान पर इतनी शान्ति क्यों ?
हर उस के रक्त का रंग लाल था ,
शहीद हिन्दू भी था, सिख भी और मुसलमान भी ,
मजहब जरूर सिखा रहा है आपस में बैर रखना ,
पर नहीं सिखा रहा रक्त की धारा बहाना ,
मजहब जरूर सिखा रहा है हिंदी है हम ,
पर मजहब ही कह रहा वतन फिर भी हिंदुस्तान है हमारा !
आतंकवाद कोई मजहब नहीं ,
मजहब तो बस आतंकवाद का खिलौना है ,
चाहे कश्मीर हो या कराची ,सत्ता की भूक का नमूना है !
----- मेरी सड़ी कवितायेँ !
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